भारत के शास्त्रीय नृत्य की समृद्ध परंपरा

भारत के शास्त्रीय नृत्य: ताल, राग और अभिनय का संगम

भारत में शास्त्रीय नृत्य की एक समृद्ध परंपरा है, जो प्राचीन काल से चली आ रही है और दुनिया भर के लोगों को आकर्षित करती है। इन नृत्यों में भारतीय संस्कृति और दर्शन का गहरा समावेश है और वे भारतीय लोगों के जीवन का एक अभिन्न अंग हैं। भारत के शास्त्रीय नृत्य को अक्सर “संतुलित नृत्य” कहा जाता है क्योंकि वे शरीर, मन और आत्मा के बीच संतुलन को दर्शाते हैं।

शिव की नटराज मूर्ति शास्त्रीय नृत्य का प्रतीक है, जिसमें नृत्य के हाव-भाव एवं मुद्राओं का समावेश है। शास्त्रीय नृत्य मूल रूप से शास्त्रीय पद्धति पर आधारित है। शास्त्रीय नृत्य से संबंधित उल्लेख भरतमुनि द्वारा रचित ‘ नाट्यशास्त्र ‘ में मिलता है। नाट्यशास्त्र में वर्णित मुद्राएँ ही भारतीय शास्त्रीय नृत्य की मूल आधार हैं।

भारत में आठ प्रमुख शास्त्रीय नृत्य हैं:

  1. भरतनाट्यम (तमिलनाडु)
  2. कथक (उत्तर प्रदेश)
  3. कथकली (केरल)
  4. मणिपुरी (मणिपुर)
  5. ओडिसी (उड़ीसा)
  6. कुचीपुड़ी (आंध्र प्रदेश)
  7. मोहिनीअट्टम (केरल)
  8. सत्रिया नृत्य (असम)

इन नृत्यों में से प्रत्येक की अपनी अनूठी शैली और विशेषताएं हैं.

1.भरतनाट्यम:

भरतनाट्यम तमिल संस्कृति में लोकप्रिय नृत्य है जो पहले मंदिर की देवदासियों द्वारा भगवान की मूर्ति के समक्ष किया जाता था, लेकिन बाद में ये तमिल संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बन गया और अब तमिलनाडु में ही क्या पूरे भारत में इसकी शिक्षा ग्रहण करना तथा नृत्याभ्यास व मंचन करने को प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जाने लगा है।

भरतनाट्यम एक भावपूर्ण नृत्य है इसमें नृत्य और अभिनय दोनों सम्मिलित हैं। इसमें शारीरिक भंगिमा पर विशेष जोर दिया जाता है। इसमें पैरों से एक लय के रूप में जमीन पर थाप दी जाती है, पैर घुटने से विशेष तरह से झुके रहते हैं तथा हाथ, गर्दन और कंधे विशेष तरह से गतिमान होते हैं।

इस नृत्य की शारिरिक प्रक्रिया के तीन अंग हैं 1. समभंग 2. अभंग 3. त्रिभंग

इसके प्रमुख कलाकार हैं-

रुक्मणि देवी अरुंडेल, ई कृष्ण अय्यर, पद्म सुब्रह्मण्यम, अलारमेल वल्ली, यामिनी कृष्णमूर्ति, मृणालिनी साराभाई, मीनाक्षी सुंदरम पिल्लई, सोनल मानसिंह, वैजयंतीमाला, स्वप्न सुंदरी, रोहिंटन कामा, लीला सैमसन, बाला सरस्वती

2.कथक:

कथक एक भारतीय शास्त्रीय नृत्य है जो उत्तर भारत में उत्पन्न हुआ था. इसका उद्भव ‘कथा’ शब्द से हुआ है जिसका अर्थ ‘कथा कहना’ होता है। इसे नटवरी नृत्य के नाम से भी जाना जाता है। यह एक भावनात्मक और नाटकीय नृत्य शैली है जो कहानियों और कविताओं को नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत करती है। कथक की उत्पत्ति उत्तर प्रदेश की ब्रजभूमि की रासलीला परंपरा से हुआ है तथा इस नृत्य के केंद्र में राधा कृष्ण की अवधारणा मौजूद है। मुगलों के आगमन के पश्चात यह नृत्य दरबार में पहुंचा तथा इस नृत्य में धर्म की अपेक्षा सौंदर्यबोध पर अधिक बल दिया जाने लगा।

कथक नृत्य में नर्तक विभिन्न मुद्राओं और भावों का उपयोग करके कहानियों और कविताओं को प्रस्तुत करते हैं। वे अपने पैरों, हाथों, सिर और शरीर का उपयोग करके विभिन्न गतिविधियों को करते हैं। कथक नृत्य की खास विशेषता इसके पद संचालन एवं चक्कर काटने में है इसमें घुटनों को नहीं मोड़ा जाता है।

कथक नृत्य में संगीत भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसको ध्रुपद एवं ठुमरी गायन के माध्यम से व्यक्त किया जाता है। नर्तक संगीत के साथ तालमेल बिठाते हुए नृत्य करते हैं और संगीत नृत्य को और अधिक भावपूर्ण बनाता है।

19वीं सदी में अवध के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह के संरक्षण में इसका स्वर्णिम रूप देखने को मिला। भारत के शास्त्रीय नृत्य में केवल कथक का ही संबंध मुस्लिम संस्कृति से भी रहा है।

कथक नृत्य में चार प्रमुख घराने हैं:

जयपुर घराना, लखनऊ घराना, बनारस घराना और रायगढ़ घराना। प्रत्येक घराने की अपनी अनूठी शैली और तकनीक है। जयपुर घराना को कथक की सबसे पुरानी शैली माना जाता है और यह अपनी सुंदरता और शास्त्रीयता के लिए प्रसिद्ध है। लखनऊ घराना अपनी भावनात्मकता और नाटकीयता के लिए जाना जाता है. वाराणसी घराना अपनी शक्ति और ऊर्जा के लिए प्रसिद्ध है.

इसके प्रमुख कलाकार हैं:

लच्छू महाराज, अच्छन महाराज, सितारा देवी, शोभना नारायण, बिरजू महाराज, दमयंती जोशी

3.कथकली:

कथकली एक प्राचीन भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैली है जो केरल राज्य से उत्पन्न हुई है। यह एक नाटकीय नृत्य है जो हिंदू महाकाव्यों और पुराणों की कहानियों को प्रस्तुत करता है। केरल के स्थानीय लोकनाट्य कुडियाट्टम एवं कृष्णाट्टम इसके प्रेरणा स्रोत हैं।

यह मुख्य रूप से पुरुषों द्वारा किया जाने वाला नृत्य था, किंतु नृत्यांगना रागिनी देवी ने पुरुषों के इस एकाधिकार को तोड़ दिया। कथकली नर्तक अत्यधिक सजाए गए परिधान और चेहरे पर मुखौटे पहनते हैं। नृत्य को संगीत और गायन के साथ किया जाता है। इस नृत्य में नर्तक द्वारा रामायण, महाभारत तथा पुराणों से लिए गए चरित्रों का अभिनय किया जाता है इसमें चेहरे के हाव-भाव, नेत्र एवं भौंह के संचालन, गालों, नाक एवं ठोड़ी की अभिव्यक्ति पर विशेष जोर दिया जाता है।

इस नृत्य में दो प्रकार के पात्र होते हैं पाचा अर्थात नायक व कैथी अर्थात खलनायक। कथकली नृत्य अच्छाई एवं बुराई के बीच चलने वाले संघर्ष को व्यक्त करता है।

इसमें नर्तक के चेहरे पर लाल, हरा, पीला, एवं काला रंग लगाया जाता है। जिसमें हरा रंग सद्गुण एवं मर्यादा का सूचक होता है, लाल रंग पाप का सूचक होता है, काला रंग तामसिक प्रवृत्ति को दर्शाता है, जबकि पीला रंग सात्विक और राजसिक स्वभाव का परिचायक होता है। इसके अलावा सफेद रंग का भी प्रयोग किया जाता है।

कथकली नृत्य आज भी केरल में बहुत लोकप्रिय है। यह नृत्य शैली पूरे भारत और दुनिया भर में भी प्रशिक्षित और प्रदर्शित की जाती है।

यहां कथकली नृत्य के कुछ प्रमुख तत्व दिए गए हैं:

* नृत्य का मंचन एक अत्यधिक सजाए गए मंच पर किया जाता है।

* नर्तक अत्यधिक सजाए गए परिधान और चेहरे के मुखौटे पहनते हैं जो पात्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

* नृत्य को संगीत और गायन के साथ किया जाता है।

* नृत्य में अत्यधिक जटिल और सुंदर मुद्राएं होती हैं

* नृत्य में भावों को व्यक्त करने के लिए चेहरे के भावों का बहुत ही प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाता है।

* नृत्य एक बहुत ही भावपूर्ण और शक्तिशाली अनुभव हो सकता है।

इसके प्रमुख कलाकार हैं

कलामंडलम रामन कुट्टी नायर, मृणालिनी साराभाई, कोटक्कल कृष्णन कुट्टी नायर,  रीता गांगुली सदानम कृष्णन कुट्टी, उदयशंकर आदि।

4.मणिपुरी नृत्य:

मणिपुरी नृत्य भारत के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर का एक शास्त्रीय नृत्य है। इसमें शरीर धीमी गति से चलता है तथा संकेतो एवं शरीर की गतियों का प्रयोग होता है, इसी कारण यह अन्य शास्त्रीय नृत्य से भिन्न है। इसमें नर्तक बहुत हल्के से जमीन पर पैर रखता है और पैरों के संचालन में कोमलता एवं मृदुलता बनाए रखता है।

इस नृत्य में भक्ति पर बल दिया जाता है तथा इसमें विष्णु पुराण, भागवत पुराण तथा गीतगोविंद से लिए गए कथानकों को नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है। नर्तक विभिन्न मुद्राओं और भावों का उपयोग करके कहानियों को प्रस्तुत करते हैं। इस नृत्य में ढोल का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है तथा इसमें मुद्राओं का सीमित प्रयोग होता है।

मणिपुरी नृत्य के तीन प्रमुख रूप हैं:

  • रास लीला: यह एक धार्मिक नृत्य है जो भगवान कृष्ण और राधा की कहानियों को प्रस्तुत करता है। इसमें राधा और गोपियों के कृष्ण से अलग होने की व्यथा को दर्शाया जाता है।
  • संकीर्तन: यह एक भक्ति नृत्य है जो भगवान कृष्ण की स्तुति करता है। इसमें पुरुष नर्तक नृत्य करते समय पुंग और करताल बजाते हैं।
  • थांग-टा: यह एक युद्ध नृत्य है जो मणिपुरी योद्धाओं के जीवन को दर्शाता है।

इसके प्रमुख कलाकार हैं:

निर्मल मेहता, रीता देवी, झावेरी बहनें, कलावती देवी, सविता देवी।

5.ओडिसी नृत्य:

ओडिसी शास्त्रीय नृत्य की उत्पत्ति ओडिशा में हुई थी। ईसा पूर्व द्वितीय शताब्दी में ‘ महरिस ‘ नामक संप्रदाय, जो शिव मंदिरों में नृत्य करता था, से ओडिसी नृत्यकला का विकास हुआ माना जाता है। 12 वीं शताब्दी में ओडिसी नृत्य पर वैष्णववाद का व्यापक प्रभाव पड़ा और इसके फलस्वरूप भगवान जगन्नाथ इस नृत्य के केंद्र बिंदु बने। ब्रह्मेश्वर मंदिर के शिलालेखों तथा कोणार्क के सूर्य मंदिर के केंद्रीय कक्ष में इसका उल्लेख है पाया जाता है।

ओडिसी नृत्य में त्रिभंग पर ध्यान केंद्रित किया जाता है । त्रिभंग में एक पाँव मोड़ा जाता है और देह थोड़ी, किंतु विपरीत दिशा में कमर और गर्दन पर मोड़ी जाती है ।

ओडिसी नृत्य में भगवान कृष्ण के बारे में कथाओं को आधार बनाकर  नृत्य किया जाता है तथा इस नृत्य में ओडिशा के परिवेश एवं वहाँ के लोकप्रिय देवता भगवान जगन्नाथ की महिमा का गान किया जाता है ।इस नृत्य में प्रयोग होने वाले छंद संस्कृत नाटक ‘ गीतगोविंदम् ‘ से लिये जाते हैं ।

 इसके प्रमुख कलाकार हैं:

संयुक्ता पाणिग्रही, इंद्राणी रहमान, सोनल मानसिंह, प्रियम्वदा मोहंती, कुमकुम मोहंती , माधवी मुद्गल आदि।

6.कुचीपुड़ी नृत्य:

कुचिपुड़ी नृत्य भारत के आठ प्राचीन शास्त्रीय नृत्य शैलियों में से एक है। यह आंध्र प्रदेश राज्य का एक नृत्य है, जिसका जन्म आंध्र प्रदेश के कुचेलपुरम गाँव में हुआ तथा इसी के नाम पर इसे “कुचिपुड़ी” कहा गया ।

यह गीत एवं नृत्य का समन्वित रूप है। यह नृत्य भगवान कृष्ण और देवी राधा की कहानियों को भी प्रस्तुत करता है। भागवत् पुराण इसका मुख्य आधार है।

इस नृत्य में पद संचालन एवं हस्तमुद्राओं का विशेष महत्त्व है। कुचिपुड़ी नृत्य का सबसे लोकप्रिय रूप मटका नृत्य है जिसमें एक नर्तकी मटके में पानी भरकर और उसे अपने सिर पर रखकर, पीतल की थाली में पैर रखकर, नृत्य करती है। इस नृत्य में कलाकार नृत्य के दौरान अपने पैर के अंगूठे से फर्श पर एक काल्पनिक आकृति बनाता है।

कुचिपुड़ी नर्तक अत्यधिक सजाए गए परिधान पहनते हैं, इस नृत्यकला में साज-सज्जा एवं वेशभूषा को विशेष  महत्त्व दिया जाता है।

इसके प्रमुख कलाकार हैं:

यामिनी कृष्णमूर्ति, लक्ष्मीनारायण शास्त्री, राधा रेड्डी, भावना रेड्डी, राजा रेड्डी, यामिनी रेड्डी आदि ।

7.मोहिनीअट्टम:

मोहिनीअट्टम एक भारतीय शास्त्रीय नृत्य है, जो केरल राज्य से उत्पन्न हुआ है। यह एक एकल नृत्य है जो महिलाओं द्वारा किया जाता है और यह भगवान विष्णु के मोहिनी रूप की कथाओं पर आधारित है। ऐसा माना जाता है कि भस्मासुर वध के लिए विष्णु द्वारा मोहिनी रूप धारण करने की कथा से इसका विकास हुआ। मोहिनीअट्टम को एक बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण नृत्य माना जाता है। यह भारत के सबसे लोकप्रिय शास्त्रीय नृत्यों में से एक है।

माना जाता है कि यह शैली भरतनाट्यम और कथकली नृत्य शैलियों से विकसित हुई है, क्योंकि इसमें भरतनाट्यम की मनोहरता एवं लालित्य तथा कथकली की वीरता का भाव सम्मिलित है। मोहिनीअट्टम में आंखों एवं इशारों की अभिव्यक्ति को कथकली से कॉपी किया गया है।

इसके प्रमुख कलाकार हैं:

के. कल्याणी अम्मा, वैजयंती माला, हेमा मालिनी, रागिनी देवी, जयप्रभा मेनन, सुनंदा नायर, गोपिका वर्मा आदि।

8.सत्रिया नृत्य:

सत्रीया नृत्य आठ मुख्य भारतीय शास्त्रीय नृत्य परंपराओं में से एक है। यह नृत्य पूर्वोत्तर भारत के असम का शास्त्रीय नृत्य है। वर्ष 2000 में इस नृत्य को भारत के आठ शास्त्रीय नृत्यों में शामिल किया गया। यह संगीत, नृत्य तथा अभिनय का सम्मिश्रण है। असम की इस नृत्य शैली के विकास का श्रेय 15 वीं सदी के संत श्रीमनता शंकरदेव को दिया जाता है। शंकरदेव ने इसे “अंकिया नाट” के प्रदर्शन के लिये विकसित किया था।

सत्त्रिया नृत्य का आधार आमतौर पर पौराणिक कहानियां होती हैं। प्रारंभ में यह पुरुषों द्वारा किया जाता था , परंतु अब इसे महिलाएँ भी करती हैं। इसमें शंकरदेव द्वारा संगीतबद्ध रचनाओं का प्रयोग होता है, जिसे ‘ बोरगीत ‘ कहा जाता है। इसमें ढोल, ताल एवं बाँसुरी का प्रयोग होता है।

सत्रिया नृत्य आज भी असम में बहुत लोकप्रिय है। यह नृत्य शैली पूरे भारत और दुनिया भर में भी प्रशिक्षित और प्रदर्शित की जाती है। सत्रिया नृत्य एक समृद्ध और विविध नृत्य शैली है, जो भारतीय संस्कृति के एक महत्वपूर्ण पहलू का प्रतिनिधित्व करती है।

इसके प्रमुख कलाकार हैं:

गुरु जतिन गोस्वामी, रामकृष्ण तालुकदार, कृष्णाक्षी कश्यप और शारदीय सैकिय आदि।

शास्त्रीय नृत्य भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का एक अभिन्न अंग है। यह नृत्य शैलियाँ प्राचीन काल से ही प्रचलित हैं और वे भारतीय संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को प्रदर्शित करती हैं। यह भारतीय लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण आनंद और गौरव का स्रोत हैं।

1 comment on “भारत के शास्त्रीय नृत्य: ताल, राग और अभिनय का संगम

  1. बहुत सुन्दर रचना…. शास्त्रीय संगीत पर भी कुछ लिखिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *